एंबुलेंसों में उगी झाड़ियां,कबाड़ में बदलीं दर्जनों सरकारी गाड़ी, खामोशी से अपनी बदहाली का कहानी बता रही… पूरी खबर जानिए विस्तार

एंबुलेंसों में उगी झाड़ियां,कबाड़ में बदलीं दर्जनों सरकारी गाड़ी, खामोशी से अपनी बदहाली का कहानी बता रही।
संवाददाता, बालक राम यादव
सुकमा : जिले के जनता के लिए कभी एंबुलेंस किसी के जीवन को बचा कर एक वरदान साबित कर सड़क में शान से दौड़ रही थी
सरकारी गाड़ियां और जीवन रक्षक एंबुलेंसें आज कबाड़ में तब्दील हो चुकी हैं,जिला अस्पताल सुकमा के लाउंड्रीवाल के पिछे आवारा छोड़ दिया गया है,खड़ी ये वाहन धूल और उपेक्षा का शिकार हैं।
गाड़ियां अब अपनी पहचान तक खो चुकी हैं,जिला अस्पताल परिसर में खड़ी दर्जनों सरकारी
गाड़ियां और एंबुलेंसें आज धूल-धूसरित होकर खामोशी से अपनी बदहाली की कहानी सुना रही हैं। इन वाहनों पर कभी गर्व किया जाता था,लेकिन अब ये उपेक्षा का शिकार होकर सिस्टम की लापरवाही का प्रतीक बन चुके हैं।
इनमें से कई गाड़ियां ऐसी हैं, जिन्हें छोटी-मोटी मरम्मत के बाद दोबारा उपयोग में लाया जा सकता था,लेकिन प्रशासन की उदासीनता ने इन्हें पूरी तरह बेकार बना दिया। विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लाई गई एंबुलेंसों की स्थिति तो और भी दयनीय है। जिला अस्पताल में खड़ी इन एंबुलेंसों पर अब झाड़ियां उग आई हैं और कई तो
इतनी जर्जर हो चुकी हैं कि इन्हें देखकर लगता है,मानो इन्हें वर्षों से छुआ तक नहीं गया।
खुद बीमार हो चुकी हैं एंबुलेंस
दरअसल जब इन एंबुलेंसों की शुरुआत हुई थी,तब ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लोगों में एक
नई उम्मीद जगी थी। उन्हें भरोसा था कि अब समय पर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होंगी और मरीजों को अस्पताल पहुंचाने में देरी नहीं होगी। लेकिन ये एंबुलेंसें आज खुद ‘बीमार’ हो चुकी हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से ही सीमित हैं, वहां मरीजों को जिला अस्पताल या नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाना किसी जंग लड़ने से कम नहीं, कई बार मरीजों को निजी साधनों या असुरक्षित तरीकों से अस्पताल ले जाना पड़ता है,जिससे उनकी जान जोखिम में पड़ जाती है।
सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग
स्वास्थ्य विभाग की यह लापरवाही न केवल जनता
के भरोसे को तोड़ रही है, बल्कि सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग भी है। अगर समय रहते इन खराब हो चुकी गाड़ियों और एंबुलेंसों की नीलामी कर दी गई
होती,तो न केवल स्वास्थ्य विभाग को अतिरिक्त आय प्राप्त होती, बल्कि इस पैसे से नई गाड़ियां
खरीदी जा सकती थीं। इससे न सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होता, बल्कि मरीजों को समय पर इलाज भी मिल पाता।
सुकमा की यह स्थिति एक गंभीर सवाल खड़ा करती है कि आखिर सरकारी संसाधनों का इस तरह दुरुपयोग क्यों हो रहा है? क्या प्रशासन की प्राथमिकता केवल चमक-दमक तक सीमित है, या
जनता की सुविधा और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में भी कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे? इस बदहाली को सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है, ताकि ये गाड़ियां फिर से सड़कों पर दौड़ सकें और लोगों की जिंदगी बचाने में योगदान दे सकें।