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छात्रों व अभिभावकों पर बोझ डालने का काम न करे विश्वविद्यालय

छात्रों व अभिभावकों पर बोझ डालने का काम न करे विश्वविद्यालय

दोगुनी फीस वृद्धि को तत्काल वापस लिया जाए

संवाददाता : बालक राम यादव 
कोंटा : एमएसयूआई प्रदेश सचिव नामीर अली ने कहा है कि शहीद महेंद्र कर्मा बस्तर विश्वविद्यालय फीस दोगुनी कर छात्रों व अभिभावकों पर बोझ डालने का काम न करे। शिक्षा नीति की आड़ में बस्तर के छात्र- छात्राओं का यह आर्थिक शोषण बर्दास्त नहीं किया जाएगा। इससे आदिवासी बाहुल्य बस्तर क्षेत्र के हजारों विद्यार्थी उच्च शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। अब तक मात्र सवा सौ छात्रों का फार्म भरना इस बात का प्रमाण है कि विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय का यह निर्णय पसंद नहीं आया है। कार्य परिषद के पूर्व सदस्य जैन ने इस निर्णय की मंजूरी कार्य परिषद से न लिए जाने पर भी आश्चर्य व्यक्त किया है।  जैन ने मांग की है कि विश्वविद्यालय प्रशासन को यह बताना चाहिए कि विद्या परिषद व कार्य परिषद में यह विषय कब लाया गया था ? बस्तर संभाग के सात जिलों में विस्तारित विश्वविद्यालय के इस विवेकहीन व अदूरदर्शी निर्णय का असर विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों पर कितना पड़ेगा इस दिशा में विचार न किया जाना साबित करता है कि अफसरशाही कितनी हावी है। पूर्व विधायक ने मीडिया को जारी बयान में कहा है कि छात्र हित में फीस बढ़ोत्तरी का निर्णय तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। उन्होने विश्वविद्यालय प्रशासन से कहा है की वह पुलिस के द्वारा छात्र नेताओं को डराने- धमकाने की अपनी मानसिकता का भी त्याग करे अन्यथा इसके दुष्परिणाम भुगतने को तैयार रहे। नमीर ने कहा है कि विद्यार्थियों के भावी जीवन से खिलवाड़ करने के बस्तर विश्वविद्यालय के फैसले की सर्वत्र निंदा होने के बाद भी फीस बढ़ोत्तरी का समर्थन करने वाले कुतर्क गढ़े जा रहे हैं, जो निंदनीय एवं अस्वीकार्य हैं।
एक साल में कार्य परिषद का गठन न होना शर्मनाक
नामीर अली ने कहा है कि फीस बढ़ोतरी जिस विद्या परिषद व कार्य परिषद से मंजूरी की प्रत्याशा में की गई है, वह शर्मनाक व खेद जनक इस लिहाज से है कि राज्य की सत्ता में आने के लगभग एक साल बाद भी प्रदेश सरकार कार्य परिषद के सदस्यों का नाम फाईनल नहीं कर पाई है। पांच विधायकों के नाम तय न होने से कार्य परिषद का कोरम ही पूरा नहीं हो पा रहा है, ऐसे में उसकी बैठक ही आहूत नहीं हो रही है, जो दुर्भाग्यपूर्ण व शर्मनाक है। इन परिस्थितियों में फीस बढ़ोत्तरी जैसे विषय को नहीं लिया जाना था लेकिन अफसरराज की यही निशानी है।

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